रिवाइज: 01-04-78
“निरन्तर योगी ही निरन्तर साथी हैं”
वरदान:- फ़रिश्ते स्वरूप की स्मृति द्वारा बाप की छत्रछाया का अनुभव करने वाले विघ्न जीत भव !
अमृतवेले उठते ही स्मृति में लाओ कि मैं फ़रिश्ता हूँ | ब्रह्मा बाप को यही दिलपसन्द गिफ्ट दो तो रोज़ अमृतवेले बापदादा आपको अपनी बाहों में समा लेंगे,अनुभवकरेंगे कि बाबा की बाहों में,अतीन्द्रिय सुख में झूल रहे हैं | जो फ़रिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहेंगे उनके सामने कोई परिस्थिति वा विघ्न आयेगा भी तो बाप उनके लिएछत्रछाया बन जायेंगे | तो बाप की छत्रछाया वा प्यार का अनुभव करते विघ्न जीत बनो |
स्लोगन:- सुख स्वरूप आत्मा स्व-स्थिति से परिस्थिति पर सहज विजय प्राप्त कर लेती है |
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