सार:- “मीठे बच्चे- दु:ख हर्ता सुख कर्ता एक बाप है,वही तुम्हारे सब दुःख दूर करते हैं, मनुष्य किसी के दु:ख दूर कर नहीं सकते”
प्रश्न:- विष्व मे अशान्ति का कारण क्या है? शान्ति स्थापन कैसे होगी ?
उत्तर:- विष्व में अशान्ति का कारण है अनेकानेक धर्म । कलियुग के अन्त मे जब अनेकता है, तब अशान्ति है । बाप आकर एक सत धर्म की स्थापना करते है ।वहाँ शान्ति हो जाती है । तुम समझ सकते हो कि इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य मे शान्ति थी । पवित्र धर्म, पवित्र कर्म था । कल्याणकारी बाप फिर से वह नई दुनियाबना रहे हैं । उसमें अशान्ति का नाम नहीं ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. राजयोग की पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है क्योंकि इससे ही हम राजाओ का राजा बनते है । यह रूहानी पढ़ाई रोज पढ़नी और पढानी है ।
2. सदा नशा रहे कि हम ब्राह्मण सच्चे मुख वशावली हैं, हम कलियुगी रात से निकल दिन में आये है, यह है कल्याणकारी पुरूषोत्तम युग, इसमें अपना और सर्व काकल्याण करना है ।
वरदान:- सर्व पदार्थो की आसक्तियों से न्यारे अनासक्त प्रकृतिजीत भव!
गर कोई भी पदार्थ कर्मेन्द्रियो को विचलित करता है अर्थात् आसक्ति का भाव उत्पन्न होता है तो भी न्यारे नही बन सकेगे । इच्छाये ही आसक्तियो का रूप है । कईकहते हैं इच्छा नही है लेकिन अच्छा लगता है । तो यह भी सूक्ष्म आसक्ति है- इसकी महीन रूप से चेकिंग करो कि यह पदार्थ अर्थात् अल्पकाल सुख के साधनआकर्षित तो नही करते है? यह पदार्थ प्रकृति के साधन हैं, जब इनसे अनासक्त अर्थात् न्यारे बनेगे तब प्रकृतिजीत बनेगे ।
स्लोगन:- मेरे-मेरे के झमेलों को छोड बेहद में रहो तब कहेंगे विष्व कल्याणकारी ।
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